बैतूल जिला अस्पताल में रिश्वतकांड पर पर्दा डालने की कोशिश? जनता के सब्र का बाँध टूटा – अब माँग रही है न्याय! फिर होगा बड़ा आंदोलन

 ✍️नितिन अग्रवाल 


बैतूल जिला अस्पताल में रिश्वतकांड पर पर्दा डालने की कोशिश? जनता के सब्र का बाँध टूटा –अब माँग रही है न्याय! फिर होगा बड़ा आंदोलन 


बैतूल | जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जिला अस्पताल में डॉ. वंदना धाकड़ और पांच नर्सिंग स्टाफ पर सीजर ऑपरेशन के नाम पर ₹5000 की अवैध वसूली के आरोप लगे थे, लेकिन एक महीने से अधिक समय गुजर जाने के बावजूद न तो दोषियों पर कार्रवाई हुई और न ही जांच रिपोर्ट सार्वजनिक की गई। इससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की मिलीभगत से मामले को दबाने की कोशिश हो रही है।

🔥 क्या है पूरा मामला?

आठनेर ब्लॉक के ग्राम अंधेरबावड़ी निवासी जयदेव सेलुकर ने आरोप लगाया कि 29 जून को उनकी पत्नी संगीता को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 1 जुलाई तक सामान्य प्रसव नहीं हो पाने पर, डॉक्टर और स्टाफ ने सीजर ऑपरेशन के लिए ₹5000 की मांग की। मजबूरी में पैसे देने के बाद ऑपरेशन हुआ। पीड़ित का दावा है कि डॉ. वंदना धाकड़ ने स्वयं यह रिश्वत ली।

इस अन्याय के खिलाफ आदिवासी युवाओं ने अस्पताल में जोरदार प्रदर्शन भी किया, लेकिन इसके बाद भी प्रशासन "सिर्फ खानापूर्ति" करता नजर आया।

⚖️ प्रशासन की कमजोर पहल:

CMHO डॉ. मनोज हुरमाड़े ने केवल डॉ. धाकड़ को मैटरनिटी वार्ड से हटाने तक की कार्रवाई की।

सिविल सर्जन डॉ. जगदीश घोरे ने कारण बताओ नोटिस जारी कर जांच की औपचारिकता निभाई।

तीन डॉक्टरों की जांच टीम गठित हुई – लेकिन अब एक माह से अधिक समय बीतने के बाद भी रिपोर्ट नहीं आई

❓ बड़े सवाल जो आज भी अनुत्तरित हैं:

डॉक्टर की जांच डॉक्टरों से कराना क्या निष्पक्षता को खतरे में नहीं डालता?

क्या जांच को जानबूझकर लटकाया जा रहा है?

क्या आदिवासी पीड़िता के साथ दोहरा अन्याय नहीं हो रहा?

क्या रिश्वतखोरी पर पर्दा डालने के लिए अधिकारी सक्रिय हैं?

🧨 CMHO और कलेक्टर की भूमिका सवालों के घेरे में:

CMHO डॉ. मनोज हुरमाड़े से जब मीडिया ने बात की तो उन्होंने कहा – "जांच में क्या निकला, यह नहीं बता सकता!"

एक जिम्मेदार अधिकारी का यह रवैया दर्शाता है कि उन्हें या तो ऊपर से दबाव है या फिर वे स्वयं इस भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन चुके हैं।

कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी, जो सामान्यतः संवेदनशील मामलों पर सक्रिय दिखते हैं, इस पूरे मामले में मूकदर्शक बने बैठे हैं। जब जनता ने प्रदर्शन किया तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि "न्याय मांगने का तरीका गलत है।" लेकिन सवाल ये है कि अगर प्रशासन समय पर न्याय नहीं देगा, तो जनता आवाज़ नहीं उठाएगी तो क्या चुपचाप अन्याय सहती रहे?

🧿 संरक्षण और मिलिभगत का संकेत:

जांच कमेटी में केवल डॉक्टरों को ही रखना – क्या इससे निष्पक्षता की उम्मीद की जा सकती है?

आरोपी डॉक्टर और उनके पति पर पहले भी गंभीर आरोप लग चुके हैं, फिर भी आज तक कोई कार्रवाई नहीं होना – क्या यह बताता नहीं कि ऊपरी संरक्षण प्राप्त है?

📢 जनता का आक्रोश – अब बस बहुत हुआ!

बैतूल की जागरूक जनता अब सवाल कर रही है:

क्या सरकारी अस्पताल गरीबों के लिए सुरक्षित हैं?

क्या रिश्वत देना अब इलाज की अनिवार्यता बन चुकी है?

कब तक दोषी अधिकारियों और डॉक्टरों को संरक्षण मिलता रहेगा?

✊ अब मांग सिर्फ एक – पारदर्शी और त्वरित न्याय!

जनता, समाजसेवी संगठनों और जागरूक युवाओं की मांग है कि:

इस मामले की सीबीआई या न्यायिक जांच कराई जाए।

जांच कमेटी में स्वतंत्र सामाजिक प्रतिनिधि और महिला आयोग के सदस्य शामिल किए जाएं।

दोषियों को तुरंत निलंबित कर मुकदमा दर्ज किया जाए।

पूरे मामले को मीडिया और जनता के सामने पारदर्शी तरीके से रखा जाए।

📍अब जनता इंतजार नहीं करेगी – अगर प्रशासन कार्रवाई नहीं करता, तो आने वाले दिनों में बड़ा जन आंदोलन हो सकता है।

> बैतूल जिला अस्पताल को "रिश्वत अस्पताल" बनने से बचाना है, तो जनता को जागरूक और संगठित होना ही होगा।

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