बैतूल हनुमान जी ने जलाई सोने की लंका, रामलीला में गूंजे जयकारे देखे वीडियो

नितिन अग्रवाल 



बैतूल हनुमान जी ने जलाई सोने की लंका, रामलीला में गूंजे जयकारे


बैतूल। गंज रामलीला मैदान में श्रीकृष्ण पंजाब सेवा समिति के तत्वावधान में चल रहे रामलीला महोत्सव के आठवें दिन सोमवार को भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों का भव्य मंचन हुआ। आदर्श इंद्रलोक रामलीला मंडल खजूरी के कलाकारों ने अंगद-रावण संवाद, रामेश्वर स्थापना और हनुमान जी द्वारा लंका दहन जैसे ऐतिहासिक प्रसंगों को इस तरह जीवंत कर दिया कि पूरा मैदान तालियों और जय श्रीराम के जयघोष से गूंज उठा।


सबसे रोमांचक दृश्य तब आया जब भक्तों की आंखों के सामने हनुमान जी ने रावण की सोने की लंका को जला डाला। यह दृश्य श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत भावुक और प्रेरणादायक रहा। रावण के अभिमान को चूर करता यह प्रसंग देखते ही लोग भक्ति भाव में डूब गए और पूरा मैदान भक्तिरस में सराबोर हो गया।

रावण के दरबार में पहुंचा वीर अंगद

कार्यक्रम की शुरुआत अंगद-रावण संवाद से हुई। शांति दूत के रूप में रावण के दरबार में पहुंचे वीर अंगद ने रावण को चेतावनी दी कि वह माता सीता को भगवान श्रीराम को सौंप दे, तभी उसका कल्याण संभव है। परंतु रावण ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। तब अंगद ने दरबार में अपना पैर जमाते हुए चुनौती दी कि यदि कोई उसका पैर हटा दे, तो श्रीराम की सेना बिना युद्ध किए लौट जाएगी। रावण सहित उसके समस्त योद्धा असफल रहे। अंततः अंगद ने कहा – “मेरा पैर क्यों पकड़ते हो, जाओ और श्रीराम के चरण पकड़ो, तभी तुम्हारा कल्याण होगा।”

रामेश्वर स्थापना और सेतु निर्माण

अंगद के लौटने के बाद युद्ध की तैयारियां शुरू हो गईं। हनुमान जी लंका से लौटकर श्रीराम को माता सीता की सुरक्षित स्थिति का समाचार देते हैं, जिसे सुनते ही पूरी वानर सेना युद्ध के लिए तत्पर हो उठी। लेकिन समुद्र पार करना सबसे बड़ी चुनौती थी। भगवान श्रीराम ने पहले समुद्र से मार्ग देने की प्रार्थना की और रामेश्वर की स्थापना कर विधिवत पूजा-अर्चना की। जब समुद्र ने मार्ग नहीं दिया, तो लक्ष्मण ने उसे तीर से सुखाने की बात कही, पर श्रीराम ने उन्हें शांत कर नल-नील को सेतु निर्माण का कार्य सौंपा।

नल-नील जिस पत्थर को छूते, वह जल में डूबता नहीं था। उन्होंने प्रत्येक पत्थर पर श्रीराम का नाम लिखकर समुद्र में डालना शुरू किया। देखते ही देखते समुद्र पर लंका तक एक भव्य पत्थरों का पुल बन गया, जिसने श्रद्धालुओं को अद्भुत दृश्य का अनुभव कराया।

युद्ध का शंखनाद

इसके बाद भी भगवान श्रीराम ने रावण को अंतिम अवसर देते हुए अंगद को मैत्री प्रस्ताव के साथ पुनः भेजा। लेकिन रावण के अहंकार ने उसे अस्वीकार कर दिया। इसी के साथ युद्ध की दुंदुभी बज उठी और पूरा रामलीला मैदान भक्तिमय वातावरण से गूंज उठा।

गंज रामलीला मैदान में देर रात तक श्रद्धालु इन अद्भुत प्रसंगों का आनंद उठाते रहे। हर दृश्य पर तालियों की गड़गड़ाहट और जय श्रीराम के नारों ने वातावरण को भक्ति और साहस से भर दिया।

“न्याय की आवाज़, जनता के साथ — आपके अपने शहर से।”नितिन अग्रवाल की खास रिपोर्ट ,,

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ